Mukesh Kumar Birthday: भारतीय फिल्म संगीत के स्वर्णिम युग में अगर किसी गायक ने भावनाओं को सुरों में पिरोकर अमर कर दिया, तो वह थे मुकेश। एक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से निकलकर उन्होंने शोहरत की बुलंदियों को छू लिया, परंतु उनके दिल में एक कसक हमेशा रह गई अपनी जिंदगी को खुद के शब्दों में कहने की। जन्मदिन के मौके पर जानते हैं, उस आवाज़ की कहानी जो आज भी दिलों में गूंजती है।
मुकेश कुमार के दिल को छू लेने वाले गाने
जब भी हिंदी फिल्म संगीत के इतिहास की बात होती है, तो मुकेश की आवाज़ को नजरअंदाज करना नामुमकिन है। ‘जीना यहां मरना यहां’, ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए’, ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ जैसे भावनात्मक गीतों के पीछे वही आवाज थी जिसने लोगों के जज़्बातों को सुर दिया। फिल्मों में राज कपूर की आवाज़ माने जाने वाले मुकेश ने अपनी गायिकी से लाखों दिलों को छुआ।
यहाँ मुकेश कुमार के ऑल टाइम 10 सबसे मशहूर और दिल को छू लेने वाले गानों की लिस्ट दी जा रही है, जिन्हें आज भी शौक से सुना जाता है। इन गानों ने न केवल हिंदी फिल्म संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि मुकेश की पहचान को अमर बना दिया
मुकेश कुमार के ऑल टाइम 10 मशहूर गाने
1. “दोस्त दोस्त न रहा” – संगम (1964)
🎬 राज कपूर | 🎼 शंकर-जयकिशन | ✍️ शैलेंद्र
यह गाना दोस्ती और भावनात्मक धोखे की गहराई को बखूबी बयां करता है।
2. “कहीं दूर जब दिन ढल जाए” – आनंद (1971)
🎬 राजेश खन्ना | 🎼 सलिल चौधरी | ✍️ योगेश
दुख, अकेलापन और जीवन के अंत की कोमल अभिव्यक्ति का प्रतीक गाना।
3. “जीना यहां मरना यहां” – मेरा नाम जोकर (1970)
🎬 राज कपूर | 🎼 शंकर-जयकिशन | ✍️ शैलेंद्र
ज़िंदगी के रंगमंच पर इंसान की मजबूरी और आत्मा का गीत।
4. “मैं शायर तो नहीं” – बॉबी (1973)
🎬 ऋषि कपूर | 🎼 लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल | ✍️ आनंद बख्शी
प्रेम में डूबे एक मासूम दिल की मीठी अभिव्यक्ति।
5. “सजन रे झूठ मत बोलो” – तीसरी कसम (1966)
🎬 राज कपूर | 🎼 शंकर-जयकिशन | ✍️ शैलेंद्र
सच्चाई और नैतिकता पर आधारित एक भावुक संदेश।
6. “दिल जलता है तो जलने दे” – पहली नजर (1945)
🎬 मोतीलाल | 🎼 अनिल बिस्वास | ✍️ नक़्श लायलपुरी
मुकेश की पहली बड़ी सफलता, जो उन्हें रातोंरात स्टार बना गई।
7. “कभी-कभी मेरे दिल में” – कभी-कभी (1976)
🎬 अमिताभ बच्चन | 🎼 खय्याम | ✍️ साहिर लुधियानवी
शायराना प्रेम की उच्चतम मिसाल, जिसे कई पीढ़ियाँ गुनगुनाती हैं।
8. “एक प्यार का नगमा है” – शोर (1972)
🎬 मनोज कुमार | 🎼 लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल | ✍️ संतोष आनंद
ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव और आशा की भावना को दर्शाता कालजयी गीत।
9. “सब कुछ सीखा हमने” – अनाड़ी (1959)
🎬 राज कपूर | 🎼 शंकर-जयकिशन | ✍️ शैलेन्द्र
सीखने और समझने की प्रक्रिया में जीवन की विडंबनाओं की झलक।
10. “मैं पल दो पल का शायर हूं” – कभी-कभी (1976)
🎬 अमिताभ बच्चन | 🎼 खय्याम | ✍️ साहिर लुधियानवी
क्षणभंगुरता और शायर की सच्चाई को बयां करता बेहद खूबसूरत नगमा।
दिल्ली के सामान्य परिवार में हुआ था जन्म
22 जुलाई 1923 को दिल्ली के एक सामान्य कायस्थ परिवार में जन्मे मुकेश चंद माथुर के घर में संगीत की कोई विरासत नहीं थी। लेकिन उन्हें सुरों से प्रेम बचपन से था। बहन की संगीत क्लास के बाहर खड़े होकर गाने सुनना और खुद से दोहराना, यहीं से संगीत का बीज अंकुरित हुआ। दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़कर उन्होंने लोक निर्माण विभाग की नौकरी कर ली, मगर दिल हमेशा संगीत की तरफ खिंचता रहा। एक पारिवारिक विवाह समारोह में उन्होंने जो गाना गाया, उसने अभिनेता मोतीलाल को प्रभावित किया और वह मुकेश को मुंबई ले आए। यहीं से उनकी संगीत यात्रा ने नई दिशा पकड़ी।
पहली नजर के गाने ने दिलाई पहचान
1941 की फिल्म ‘निर्दोष’ से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन पहचान मिली 1945 में फिल्म ‘पहली नजर’ से, जब उन्होंने अनिल बिस्वास के निर्देशन में ‘दिल जलता है तो जलने दे’ गाया। इस गाने ने उन्हें एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया। 1950 के दशक में वे ‘शोमैन’ राज कपूर की स्थायी आवाज़ बन गए। उन्होंने कपूर के लिए 110 से ज्यादा गाने गाए, मनोज कुमार के लिए 47 और दिलीप कुमार के लिए लगभग 20 गीत दिए। उनकी आवाज़ ने इन अभिनेताओं के अभिनय में और भी जान डाल दी। इसके लिए उन्हें चार फिल्मफेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय सम्मान भी मिला।
हालांकि, जीवन की इस सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए मुकेश के दिल में एक ख्वाहिश हमेशा पलती रही अपनी आत्मकथा लिखने की। वे चाहते थे कि वे अपने संघर्ष, प्रेम, संगीत यात्रा और भावनात्मक अनुभवों को शब्दों में संजोएं।
एक लाइव कॉन्सर्ट में मौत
27 अगस्त 1976 को, मिशिगन (अमेरिका) में एक लाइव कॉन्सर्ट के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे दुनिया को अलविदा कह गए। उनका अचानक यूं चला जाना न सिर्फ उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे फिल्म जगत के लिए एक बड़ा झटका था। मुकेश भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी गाई हुई हर पंक्ति, हर सुर आज भी उन अनकहे जज़्बातों को ज़िंदा रखे हुए है, जिन्हें उन्होंने कभी शब्दों में समेटने की ख्वाहिश की थी।
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